भौतिक विज्ञान 1500 प्रश्न उत्तर Part 5

भौतिक विज्ञान 1500 प्रश्न उत्तर Part 5

401    *दाब बढ़ाने तथा अशुद्धि मिलाने से द्रव का क्वथनांक बढ़ता है |
402    *गुप्त उष्मा : नियत ताप पर पदार्थ की अवस्था में परिवर्तन के लिए आवश्यक उष्मा को पदार्थ की गुप्त उष्मा कहते हैं |
403    *गलन की गुप्त उष्मा : नियत ताप पर ठोस के एकांक द्रव्यमान को द्रव में बदलने के लिए आवश्यक उष्मा की मात्रा को गलन की गुप्त उष्मा कहते हैं |
404    *बर्फ के लिए गलन की गुप्त उष्मा का मान 80 कैलोरी प्रति ग्राम होता है |
405    *वाष्पन की गुप्त उष्मा : नियत ताप पर द्रव के एकांक द्रव्यमान को वाष्प में बदलने के लिए आवाश्यक उष्मा की मात्रा को वाष्पन की गुप्त उष्मा कहते हैं | जल के लिए वाष्पन की गुप्त उष्मा का मान 540 कैलोरी प्रति ग्राम होता है |
406    *उबलते जल की अपेक्षा भाप से जलने पर कष्ट अधिक होता है, क्योकि जल की अपेक्षा भाप की गुप्त उष्मा अधिक होती है |
407    *0 C पर पिघलती बर्फ में कुछ नमक, शोरा मिलाने से बर्फ का गलनांक 0 C से घट कर -22 C  तक कम हो जाता है |
408    *कैलोरीमिति के सिद्धांत के अनुसार, दी गई उष्मा = ली गई उष्मा |
409    *आपेक्षिक आर्द्रता को प्रतिशत में व्यक्त करते हैं | इसे मापने के लिए हाइग्रोमीटर का प्रयोग किया जाता है | ताप बढ़ने पर आपेक्षिक आर्द्रता बढ़ती है |
410    *वातानुकुलित कमरे का ताप 23 C – 25 C के मध्य होना चाहिए | वायु की आपेक्षिक आर्द्रता 60% से 65% के बीच होनी चाहिए | वायु की गति 0.75 मी./मिनट से 2.5 मी./मिनट तक होनी चाहिए |
411    *तेज हवा वाली रात में ओस नहीं बनती, क्योंकि वाष्पीकरण की दर तेज होती है |
412    *ठंडक के दिन में सुबह लकड़ी की तुलना में लोहे का टुकड़ा अधिक ठंडा होता है, क्योंकि लकड़ी की तुलना में लोहा उष्मा का अच्छा चालक होता है |
413    *पहाड़ी स्थानों में जल का क्वथनांक कम होता है, क्योंकि वहाँ वायुमंडल का दाब कम होता है |
414    *पानी की विशिष्ट ऊष्मा सबसे अधिक 4200 जूल, तथा बर्फ की 2100 जूल होती है |
415    *ठंडे देशों मे कार रेडिएटरों में पानी के साथ एथलीन ग्लोकाइन मिलाया जाता है, यह पानी को जमने से रोकता है |
416    *स्टीम इंजन की क्षमता काफी कम होती है |
417    *जब वाष्प संघनित होती है, तो वह उष्मा उत्सर्जित करती है |
418    *लालटेन की लपट का पीला रंग केरोसीन के पूर्ण दहन का सूचक होता है |
419    *जलती हुई मोमबत्ती की लौ के उर्ध्वाधर सीधी होने का कारण वायु का गर्म होकर ऊपर उठना होता है |
420    *यदि हवा का तापमान बढ़ता है, तो उसकी जलवाष्प ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है |
421    *धूप से बचने के लिए छाते में ऊपर सफेद तथा नीचे काले रंग का प्रयोग करना चाहिए |
422    *शीशे की छड़ जब भाप मे रखी जाती है, इसकी लम्बाई बढ़ जाती है, परंतु इसकी चौड़ाई अव्यवस्थित होती है |
423    *प्रेशर कुकर के अंदर का उच्चतम ताप ऊपर के छेद के क्षेत्रफल व उसपर रखे गये वजन पर निर्भर करता है |
424    *तापमापी में पारे का प्रयोग किया जाता है, क्योंकि यह गर्म होने पर अधिक फैलता है |
425    *परम शून्य ताप पर अवस्था परिवर्तन नहीं होता है |
426    *द्रव तापमापी की अपेक्षा गैस तापामापी अधिक संवेदी होती है, क्योंकि गैस, द्रव की अपेक्षा अधिक प्रसार करती है |
427    *भारी हिमखण्ड शीर्ष की अपेक्षा नीचले तल से अधिक पिघलता है, क्योंकि निचले तल का दाब अधिक होने से गलनांक घट जाता है |
428    *न्यूनतम सम्भव तापमान -273 अंश होता है |
429    *कमरे मे पंखा चला दिया जाये, तो कमरे की वायु का तपमान बढ़ जायेगा |
430    *झरने का जल ऊपर से नीचे गिरता है, तो उसका ताप बढ़ जाता है |
431    *पायरोमीटर से 800  से ऊपर का ताप मापा जाता है |
432    *किसी ठोस का ताप बढ़ाने पर उसका आयतन बढ़ जाता है, क्योंकि अणुओं के बीच की दूरी बढ़ जाती है |
433    *वाष्प इंजन एक बाह्य दहन इंजन होता है |
434    *प्रकाश एक प्रकार की ऊर्जा है जो विद्युत तरंगों के रूप में संचरित होती है | इसका तरंग दैर्ध्य 3900Á से 7800Á के बीच होता है |
435    *वायु तथा निर्वात में प्रकाश की चाल सबसे अधिक होती है | निर्वात में प्रकाश की चाल 3 108 मी./से. होती है |
436    *प्रकाश तरंग अनुप्रस्थ होती है | प्रकाश सरल रेखा में गति करता है |
437    *प्रकाश की चाल माध्यमों के अपवर्तनांक पर निर्भर करती है, माध्यम का अपवर्तनांक अधिक होने पर प्रकाश की चाल कम हो जाती है |
438    *यदि प्रकाश एक पारदर्शक माध्यम से दूसरे पारदर्शक माध्यम में जाता है तो उसका अपवर्तन हो जाता है |
439    *प्रकाश को सूर्य से पृथ्वी तक आने में औसतन 499 सेकेंड यानी 8 मिनट 19 सेकेंड का समय लगता है |
440    *चंद्रमा से परावर्तित प्रकाश को पृथ्वी तक आने में 1.28 सेकेंड का समय लगता है |
441    *प्रकाश का प्रकीर्णन : जब प्रकाश ऐसे माध्यम से गुजरता है, जिसमें धूल तथा अन्य पदार्थों के  अत्यंत सूक्ष्म कण होते हैं, तो इनके द्वारा प्रकाश सभी दिशाओं में प्रसारित हो जाता है, इसे प्रकाश का प्रकीर्णन कहते हैं |
442    *बैगनी रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे अधिक एवं लाल रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे कम होता है |
443    *आकाश का रंग नीला प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण ही होता है |
444    *अपवर्तन के समय आपतित किरण, अभिलम्ब तथा अपवर्तित किरण तीनों एक ही समतल में स्थित होते हैं |
445    *किसी माध्यम का अपवर्तनांक भिन्न-भिन्न रंग के प्रकाश के लिए भिन्न-भिन्न होता है |
446    *तरंग दैर्ध्य बढ़ने के साथ-साथ अपवर्तनांक का मान कम हो जाता है |
447    *लाल रंग का तरंग दैर्ध्य सबसे अधिक एवं नीले रंग का सबसे कम होता है |
448    *लाल रंग का अपवर्तनांक सबसे कम एवं नीले रंग का सबसे अधिक होता है |
449    *यदि प्रकाश की किरण विरल माध्यम से सघन माध्यम में जाती है तो वह अभिलम्ब की तरफ झुक जाती है |
450    * यदि प्रकाश की किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती है तो वह अभिलम्ब से दूर हट जाती है |
451    *सामान्यत: मानव के नेत्रों की क्षमता पांच रंगों बैगनी, नीला, हरा, पीला तथा लाल को अलग-अलग पहचानने तक सीमित होती है |
452    *सामान्य आंख के लिए सुस्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी 25 सेमी. तथा अधिकतम दूरी अनंत होती है |
453    *सूर्य का प्रकाश जिसे श्वेत प्रकाश कहते हैं, सात वर्णों के प्रकाश का मिश्रण होता है |
454    *सूर्य के प्रकाश में प्रकीर्णन सबसे अधिक बैगनी रंग का होता है |
455    *प्रकाश के परावर्तन से घटने वाली घटनाएं : 1.द्रव में अंशत: डूबी हुई सीधी छड़ टेढी दिखाई पड़ती है | 2. तारे टिमटिमाते हुए दिखाई पड़ते हैं | 3. सूर्योदय से पहले एवं सूर्यास्त के बाद भी सूर्य दिखाई देता है | 4. पानी से भरे बर्तन की तली में पडा सिक्का उठा हुआ दिखाई पड़ता है | 5. जल के अंदर मछली वास्तविक गहराई से कुछ ऊपर प्रतीत होती है |
456    *किसी गोलीय दर्पण की फोकस दूरी, उसकी वक्रता त्रिज्या की आधी होती है, फोकस-दूरी = वक्रता त्रिज्या या f =
457    *समतल, अवतल एवं उत्तल दर्पणों की पहचान : 1. स्पर्श करके : जिस दर्पण का परावर्तक तल उभरा हुआ होता है, वह उत्तल दर्पण होता है | यदि परावर्तक तल समतल हो, तो वह समतल दर्पण होता है | यदि परावर्तक तल अंदर की ओर दबा मालूम हो, तो वह अवतल दर्पण होता है | 2. प्रतिबिम्ब देखकर : दर्पण के पास किसी वस्तु को लाकर उसे धीरे-धीरे दर्पण से दूर हटाते हैं तथा दर्पण में वस्तु के बने प्रतिबिम्ब को देखते हैं | यदि सीधें प्रतिबिम्ब का आकार घटता है, तो वह दर्पण उत्तल होगा, यदि सीधे प्रतिबिम्ब का आकार बढ़ता है तो वह दर्पण अवतल दर्पण होगा | यदि सीधे प्रतिबिम्ब का आकार स्थिर रहता है, तो दर्पण समतल होगा |
458    *गोलीय दर्पणों के उपयोग : 1. समतल दर्पण का उपयोग : आइना के रूप में, पेरिस्कोप, कैलीडोस्कोप आदि के रूप में | 2. उत्तल दर्पण का उपयोग : मोटर कार के पीछे के दृश्य देखने के लिए, सड़क पर लगे सोडियम परावर्तक लैम्पो में, सूक्ष्म दर्शी एवं दूरदर्शी में उत्तल लेंस का प्रयोग किया जाता है | 3. अवतल दर्पण का उपयोग : बडी फोकस दूरी का अवतल दर्पण दाढी बनाने के काम में आता है, आँख, नाक, कान एवं गले के जांच के काम में आता है | गाडी के हेडलाइट, सर्च लाइट, एवं सोलर कुकर तथा टार्च में इसका उपयोग किया जाता है |
459    *समतल दर्पण में किसी वस्तु का प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे उतनी ही दूरी पर बनता है, जितनी दूरी पर वस्तु दर्पण के सामने रखी होती है | यह प्रतिबिम्ब काल्पनिक, वस्तु के बराबर एवं पार्श्व उल्टा होता है | समतल दर्पण में वस्तु का पूर्ण प्रतिबिम्ब देखने के लिए दर्पण की लम्बाई वस्तु की लम्बाई से कम से कम आधी होनी चाहिए |
460    *उत्तल दर्पण में प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे, उस के ध्रुव एवं फोकस के बीच वस्तु से छोटा, सीधा एवं आभासी बनता है |
461    *अवतल दर्पण के फोकस और ध्रुव के बीच स्थित वस्तु का प्रतिबिम्ब सीधा, आभासी एवं बडा बनता है | अवतल दर्पण सदा अपसारी होता है | यदि किसी वस्तु को दर्पण के निकट रखने पर सीधा प्रतिबिम्ब बने तथा दूर रखने पर वास्तविक प्रतिबिम्ब बने तो वह दर्पण अवतल होगा |
462    *प्राथमिक इंद्रधनुष : जब वर्षा की बूंदों पर आपतित होने वाली सूर्य की किरणों का दो बार अपवर्तन एवं एक बार परावर्तन होता है तो प्राथमिक इंद्र धनुष का निर्माण होता है | इसमें लाल रंग बाहर की ओर एवं बैगनी रंग अंदर की ओर होता है |
463    *द्वितीयक इंद्रधनुष : जब वर्षा की बूंदों पर आपतित होने वाली सूर्य-किरणों का दो बार अपवर्तन एवं दो बार परावर्तन होता है, तो द्वितीयक इंद्रधनुष का निर्माण होता है | इसमें बाहर की ओर बैगनी रंग एवं अंदर की ओर लाल रंग होता है |
464    *वस्तुओं का रंग : वस्तु जिस रंग का दिखाई देती है, वह वास्तव में उसी रंग को परावर्तित करती है, तथा शेष सभी रंग को अवशोषित कर लेती है | जो वस्तु सभी रंग को परावर्तित कर देती है वह सफेद दिखाई देती है, क्योकि सभी रंगों का मिश्रण प्रभाव सफेद होता है | जो वस्तु सभी रंगों को अवशोषित कर लेती है, वह काली दिखाई पड़ती है |
465    *लाल, हरा एवं नीला रंग को प्राथमिक रंग कहते हैं, इन्ही रंगों का प्रयोग कलर टेलीविजन में किया जाता है |
466    *कांच में बैगनी रंग के प्रकाश का वेग सबसे कम तथा अपवर्तनांक सबसे अधिक होता है, तथा लाल रंग का वेग सबसे अधिक एवं अपवर्तनांक सबसे कम होता है |
467    *लेंस : लेंस का मुख्य कार्य प्रकाश किरणों को मोड़ना है | कोई लेंस प्रकाश किरणों को जितना अधिक मोड़ता है उतनी ही अधिक क्षमता वाला कहा जाता है | कम फोकस-दूरी वाले लेंस अधिक फोकस-दूरी वाले लेंस की तुलना में प्रकाश किरणों को अधिक मोड़ता है, अर्थात लेंस की क्षमता उसकी फोकस दूरी के व्युत्क्रमानुपाती होती है | अत: P =  या , P =  डायोप्टर |
468    *लेंस की क्षमता का मात्रक डायोप्टर होता है |
469    *उत्तल लेंस की क्षमता धनात्मक तथा अवतल लेंस की क्षमता ऋणात्मक होती है |
470    *यदि दो लेंसों को परस्पर सटा कर रख दें, तो उनकी क्षमताएं जुड़ जाती हैं तथा संयुक्त लेंस की क्षमता दोनों लेंस के बराबर होती है | संयुक्त लेंस की फोकस दूरी का सूत्र – 1/f = 1/f1 + 1/f2 होता है |
471    *लेंस का सूत्र :  होता है |
472    *उत्तल एवं अवतल लेंस की पहचान : 1. स्पर्श द्वारा : उत्तल लेंस किनारे की अपेक्षा बीच में मोटा तथा अवतल लेंस किनारे की अपेक्षा बीच में पतला होता है | 2. प्रतिबिम्ब के द्वारा : दूर की वस्तु को देखने पर उत्तल लेंस में प्रतिबिम्ब उल्टा तथा छोटा दिखाई देता है, जबकि अवतल लेंस में प्रतिबिम्ब सीधा तथा छोटा दिखाई देता है |
473    *निकट की वस्तु जैसे-कागज पर मुद्रित अथवा लिखित अक्षर उत्तल लेंस से बड़े आकार में दिखाई देते हैं, जबकि अवतल लेंस द्वारा ये अक्षर छोटे दिखाई देते हैं |
474    *यदि दूर की या निकट की वस्तु जैसी है वैसी ही, न छोटी, न बडी, न उल्टी दिखाई दे तो माध्यम के दोनों पृष्ठ समांतर होंगे, अर्थात यह लेंस न होकर कांच की समांतर पट्टिका होगी |
475    *मानव एवं जन्तुओं के नेत्रों मे बाहरी वस्तुओं का प्रतिबिम्ब, नेत्र के भीतर स्थित उत्तल लेंस द्वारा बनता है |
476    *उत्तल लेंस सदा अभिसारी होता है |
477    *लेंस में प्रकाश का अपवर्तन होता है |
478    *मानव नेत्र : मानव नेत्र द्वारा वस्तुओं से आने वाले प्रकाश के नेत्र में स्थित लेंस द्वारा अपवर्तन के कारण, नेत्र के पीछले भाग में स्थित रेटिना पर वास्तविक, उल्टे तथा छोटे प्रतिबिम्ब बनते हैं |
479    *नेत्र से देखते समय वस्तु नेत्र की लेंस के फोकस-दूरी के दुगुने से अधिक (2f से अधिक) दूरी पर होती है |
480    *आँख का रंग आइरिस के रंग पर निर्भर करता है |
481    *आइरिस मे एक छिद्र होता है, जिसे पुतली कहते हैं | पुतली प्रकाश में स्वत: छोटी एवं अंधकार में बड़ी हो जाती है |
482    *दृष्टि दोष के प्रकार : 1. निकट दृष्टि दोष या मायोपिया, 2. दूर दृष्टि दोष अथवा हाइपर मेट्रोपिया, 3. जरा दृष्टि दोष |
483    * निकट दृष्टि दोष या मायोपिया : इस रोग से ग्रसित व्यक्ति को नजदीक की वस्तु दिखाई पड़ती है, परंतु दूर स्थित वस्तु को नहीं देख पाता है | कारण : 1. लेंस की गोलाई बढ़ जाती है | 2. लेंस की फोकस दूरी घट जाती है | 3. लेंस की क्षमता बढ़ जाती है | इसी कारण वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना पर न बनकर रेटिना के आगे बनता है | निवारण : निकट दृष्टि दोष के निवारण हेतु अवतल लेंस का प्रयोग किया जाता है |
484    *दूर दृष्टि दोष : इस रोग से ग्रसित व्यक्ति को दूर की वस्तु दिखाई पड़ती है, परंतु निकट की वस्तु नहीं दिखाई पड़ती है | कारण : 1. लेंस की गोलाई कम हो जाते है | 2. लेंस की फोकस-दूरी बढ़ जाती है | 3. लेंस की क्षमता घट जाती है | इस रोग में निकट की वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना के पीछे बनता है | निवारण : इस दोष के निवारण हेतु उत्तल लेंस का प्रयोग किया जाता है |
485    *जरा दृष्टि दोष : वृद्धावस्था के कारण आँख की सामंजस्य क्षमता घट जाती है या समाप्त हो जाती है, जिसके कारण व्यक्ति न तो दूर और न ही निकट की वस्तु देख सकता है, इसे जरा दृष्टि दोष कहते हैं | निवारण : इस रोग के निवारण के लिए द्विफोकसी लेंस (उभयातल लेंस) या बाई फोकल लेंस का उपयोग किया जाता है |
486    *सरल-सूक्ष्मदर्शी कम फोकस-दूरी का उत्तल लेंस होता है |
487    *संयुक्त-सूक्ष्मदर्शी में एक ही अक्ष पर दो उत्तल लेंस लगे होते हैं |
488    *दूरदर्शी में दो उत्तल लेंस होते हैं |
489    *दर्शन कोण जितना छोटा होता है, वस्तु उतनी ही छोटी दिखाई पड़ती होती है |
490    *हीरा का चमकना तथा मृग मरीचिका का बनना पूर्ण आंतरिक परिवर्तन के कारण होता है |
491    *पानी के अंदर हवा का बुलबुला अवतल लेंस की भांति कार्य करता है |
492    *अवतल दर्पण में वास्तविक एवं काल्पनिक दोनों प्रतिबिम्ब बनते हैं |
493    *उत्तल दर्पण में केवल काल्पनिक प्रतिबिम्ब बनते हैं |
494    *काल्पनिक प्रतिबिम्ब हमेशा सीधा बनता है |
495    *वास्तविक प्रतिबिम्ब हमेशा उल्टा बनता है |
496    *अवतल दर्पण का काल्पनिक प्रतिबिम्ब हमेशा वस्तु से बड़ा एवं उत्तल दर्पण का काल्पनिक प्रतिबिम्ब हमेशा वस्तु से छोटा बनता है |
497    *चलचित्र में प्रति सेकेंड 24 चित्र दिखाये जाते हैं |
498    *उत्तल लेंस को Reading lens भी कहते हैं |
499    *प्रकाश के व्यक्तिकरण के कारण साबुन के बुलबुलों का रंग रंगीन दिखाई देता है |
500    *प्रकाश तरंगों का प्रकाशीय प्रभाव केवल विद्युत – क्षेत्र के कारण होता है |
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भौतिक विज्ञान 1500 प्रश्न उत्तर Part 5 भौतिक विज्ञान 1500 प्रश्न उत्तर Part 5 Reviewed by vishal on October 18, 2018 Rating: 5

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